सघन वन में झुर्मुटों से झाँकती किरणों के जैसी,
कुमुदिनी की पत्तियों पर श्वेत जल के बूँद जैसी,
कोयल की मीठी कूक जैसी, सर्दियों की धूप जैसी,
कोई तो होगी......
जानता हूँ मेरे सारे गीत अनसुने हैं अभी भी,
संघर्ष पथ पर हूँ अकेला और मैं एक अजनबी भी,
मेरे गीतों को समझ कर, हाथों में मेरा हाथ लेकर,
साथ दे जो हर कदम पर, प्रेम के प्रारूप जैसी,
कोई तो होगी......
हर तरफ चहेरे ही चहेरे , खो गयी है भीड़ में वो,
ढूढ़ लूँगा एक दिन मैं, प्रयत्न चाहे जीतने भी हो,
फिर नया जीवन मिलेगा, फिर लिखूंगा गीत नये में,
सृष्टि के प्रारंभ जैसी, शब्द जैसी,चाँद जैसी,
कोई तो होगी......
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1 comment:
this is very good!
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