ढलती हुई शाम को एक स्पर्श होता है ...
हर बीते हुए पल की सच्चाई का एह्शास होता है..
जब जागती है एक लौ के जैसी ....
संवेदना..
हर चेहरे में दूंदते हैं वही चेहरा रकीब
तन्हाई में भी भीड़ का एहसास होता है..
दूर होकर भी वो साथी पास होता है.
रात के अंधियारे में जब जागती है पौ के जैसी ..........
संवेदना..
Friday, February 27, 2009
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